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आप हमसे संपर्क करने के लिए  नीचे  दिए नंबरों पर फोन कर सकते हैं:

फोन (भारत में):   +91-9811036346 (सजीव सारथी) या +91-9878034427 (सुजॉय चटर्जी)
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अमित तिवारी



अमित तिवारी - संस्थापक एवं तकनीकी प्रमुख




अमित तिवारी गणित, कंप्यूटर साइंस और बैंकिग प्रबंधन में स्नातकोत्तर हैं। इनका मूल निवास स्थान उत्तरांचल, भारत में  है। इनका बचपन हिमालय की गोद में बीता है
अमित तिवारी

हिंदी साहित्य के प्रति इन्हें गहन अभिरुचि है। वर्तमान में ये टोरोंटो, कनाडा में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में आई टी प्रोजेक्ट मैनेजर  के पद पर कार्यरत हैं। इनकी अभिरुचि हिंदी संगीत, फोटोग्राफी, और साहित्य अध्ययन में है। आप इनसे संपर्क करने के लिए इन्हें amit@adeeti.com पर मेल कर सकते हैं

अनुराग शर्मा


अनुराग शर्मा - संस्थापक और वाहक (सुनो कहानी)




आपको अनुराग शर्मा का नमस्कार! पिट्सबर्ग, संयुक्त राज्य अमेरिका  से हिन्दी में रोज़मर्रा की बातें लिखता हूँ. शायद आपके कुछ काम आयें और दिन सार्थक करें। 
इनका मानना है कि भारत में ऑडियो बुक्स में अभी बहुत सम्भावने हैं। ये हिन्दी साहित्य को किसी भी तरह से जनप्रिय बनाना चाहते हैं। इसीलिए अपनी आवाज़ में प्रसिद्ध कहानियों को वाचने का सिलसिला शुरू कर दिया है। 
अनुराग शर्मा


अनुराग विज्ञान में स्नातक तथा आईटी प्रबंधन में स्नातकोत्तर हैं। एक बैंकर रह चुके हैं और वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक स्वास्थ्य संस्था में ऍप्लिकेशन आकिर्टेक्ट हैं। उत्तरप्रदेश में जन्मे अनुराग भारत के विभिन्न राज्यों में रह चुके हैं ।  लिखना, पढ़ना, बात करना यानी सामाजिक संवाद उनकी हॉबी है। शायद इसीलिए वे कविता, कहानी, लेख आदि विधाओं में सतत् लिखते रहे हैं। वे दो वर्ष तक एक इन्टरनेट रेडियो (PittRadio) चला चुके है।आप उन्हें स्मार्ट इंडियन पर भी मिल सकते हैं। 

सुजॉय चट्टर्जी


सुजॉय चट्टर्जी - संस्थापक एवं वाहक (ओल्ड इस गोल्ड)



सुजॉय बंगाल के रहनेवाले हैं, लेकिन उनका जन्म और पूरी पढाई  असम में हुई। इसलिए वो अपने आप को असम का ही रहनेवाला मानते  हैं । फ़िल्हाल वो चण्डीगढ़ में नौकरी कर रहे हैं । पेशे से 'टेलीकाम इंजिनीयर' हैं , और उनकी  दिलचस्पी है हिंदी फ़िल्म संगीत में, फ़ोटोग्राफ़ी में, और खाना बनाने में। 


सजीव सारथी


सजीव सारथी का नाम इंटरनेट पर कलाकारों की जुगलबंदी करने के तौर पर भी लिया जाता है। वर्चुएल-स्पेस में गीत-संगीत निर्माण की नई और अनूठी परम्परा की शुरूआत करने का श्रेय सजीव सारथी को जाता है। अक्टूबर 2007 में सजीव ने संगीतकार ऋषि एस के साथ मिलकर कविताओं को स्वरबद्ध करने की नींव डाली। सजीव के निर्देशन में ही 3 फरवरी 2008 को अनूठी संगीतमय एल्बम 'पहला सुर' ज़ारी हुआ जिसमें 6 गीत सजीव सारथी द्वारा लिखित थे।

4 जुलाई 2008 को उन्होंने 'आवाज़' मंच की विधिवत शुरूआत की, 4 जुलाई से लेकर 31 दिसम्बर 2008 तक सजीव के नियंत्रण में प्रत्येक शुक्रवार एक गीत रीलिज किया गया, जिससे 60 से अधिक कलाकारों (गायकों, संगीतकारों और गीतकारों) को एक विश्वव्यापी मंच मिला। आवाज़ ने 'पॉडकास्ट कवि सम्मेलन', 'सुनो कहानी', 'ओल्ड इज़ गोल्ड', 'महफिल-ए-ग़ज़ल', 'ताज़ा सुर ताल', 'ऑनलाइन पुस्तक विमोचन', 'गीतकास्ट प्रतियोगिता' जैसे कई लोकप्रिय स्तम्भों की शुरूआत की। दूसरे सत्र के संगीतबद्ध गीतों को रीलिज करने की कड़ी में सजीव सारथी द्वारा 10 गीत लिखे गये। सजीव ने भारत में रूसी दूतावास के लिए 'भारत-रूस मित्रता' पर 'द्रुज़बा' गीत की रचना की।

जन्म हुआ २४ फरवरी १९७४ को दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव में। चार साल के थे जब दिल्ली आये, तब से यहीं हैं। बचपन से ही साहित्य, संगीत और सिनेमा, इनके जीवन के आधार रहे, वाणिज्य में सनातन किया ताकि कोई अच्छी नौकरी मिले वो मिली भी, पर मन हमेशा रचनात्मक कार्य-कलापों में ही लगा। स्कूल से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भागीदारी शुरू हो चुकी थी, जो कॉलेज़ में पहुँच कर अपने चरम पर पहुँची।

मूलतः एक गीतकार हैं, जो कविताओं में अपने आपको तलाश करते हैं, कहानी-पटकथा-संवाद भी लिखते हैं. २०१० में इनकी कुछ कवितायेँ "संभावना डॉट कॉम" में प्रकाशित हुई, तत्पश्चात साल २०११ में इनकी कविताओं का पहला संकलन "एक पल की उम्र लेकर" हेवंली बेबी बुक्स कोच्ची ने जारी किया, जो फ्लिप्कार्ट और अन्य माध्यमों से पूरे भारत में उपलब्ध हुई और पाठकों की जबरदस्त सराहना भी इसे प्राप्त हुई. २०११ नवंबर में प्रदर्शित फिल्म "DAM 999" का सबसे लोकप्रिय गीत "बात ये क्या है जो" सजीव की कलम से ही निकला. डी डी कश्मीर के धारावाहिक "कुर्बत" का शीर्षक गीत भी सजीव ने लिखा. प्लेबैक इंडिया के सञ्चालन के साथ साथ सजीव और भी बहुत सी रचनात्मक गतिविधियों में निरंतर सक्रिय हैं.

गीतकार कवियों को अधिक पढ़ते हैं, इसलिये जाहिर है कि गुलज़ार, जावेद अख़्तर, निदा फ़ाज़ली, नीरज, इंदीवर, मजरूह, रविंद्र जैन सभी धड़कनें हैं इनकी, यूँ तो थोड़ा-थोड़ा निराला, नागार्जुन, बशीर बद्र, मीर, ग़ालिब सभी को पढ़ा है। शैलेंद्र इनके अतिप्रिय हैं जिनकी इन दो पक्तियों में इनके अनुसार इनके जीवन का सार है-

"आबाद नहीं बरबाद सही, गाता हूँ ख़ुशी के गीत मगर,
जख्मों से भरा सीना है मेरा , हँसती है मगर ये मस्त नज़र"

संपर्क-
७७७, सेक्टर ६
आर के पुरम, नई दिल्ली-११००२२
sajeevsarathie@gmail.com
09871123997


विश्व दीपक


विश्व दीपक - संस्थापक एवं वाहक (महफ़िल-ए-गज़ल)



इनका जन्म बिहार के सोनपुर जिसे हरिहरक्षेत्र भी कह्ते हैं, में २२ अक्टूबर १९८४ को हुआ था। बचपन से ही हिंदी कविताओं में इनकी रूचि थी । जब उच्च विद्यालय में इनका दाखिला हुआ, तो अपने परम मित्र मनीष सिंह के साथ मिलकर कवितायें रचने का इन्होंने विचार किया । इस तरह आठवीं कक्षा से इन्होंने लेखन प्रारंभ कर दिया । इनके परम मित्र ने बाद में लेखन से सन्यास ले लिया । परंतु इनका लेखन अबाध गति से चलता रहा । इन्होंने अपनी कविताओं और अपनी कला को बारहवीं कक्षा तक गोपनीय ही रखा । तत्पश्चात मित्रों के सहयोग के कारण अपने क्षेत्र में ये कवि के रूप में जाने गये । बारहवीं के बाद इनका नामांकन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के संगणक विज्ञान शाखा में हो गया । कुछ दिनों तक इनकी लेखनी मौन रही,परंतु अंतरजाल पर कुछ सुधि पाठकगण और कुछ प्रेरणास्रोत मित्रों को पाकर वह फिर चल पड़ी । ये अभी भी क्रियाशील है। लगभग २० से अधिक इंटरनेटिया समागम से निर्मित गीत रच चुके हैं. महफ़िल-ए-गज़ल की लोकप्रियता में इनका शोध और प्रस्तुति कबीले तारीफ है

स्वर्गीय श्री कृष्ण मोहन मिश्र


स्वर्गीय श्री कृष्ण मोहन मिश्र-संस्थापक और वाहक 'स्वरगोष्ठी'

व्यक्ति परिचय

नाम - कृष्णमोहन मिश्र 



     कृष्णमोहन मिश्र

जन्मतिथि/जन्मस्थान - ७ दिसम्बर १९४८/ वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
निधन - ३२ दिसम्बर २०२० / लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा-दीक्षा एवं कार्य - वाराणसी, इलाहाबाद और दास नगर (हावड़ा)/ मेकेनिकल इंजीनियरिंग | प्राविधिक शिक्षा विभाग में अध्यापन तथा यहीं से २००९ में प्रशिक्षण अधिकारी के रूप में सेवानिवृत्त |

अभिरुचि - बचपन से नाटकों में अभिनय | वयस्क होने पर अभिनय के साथ-साथ निर्देशन भी किया | १९७२ में संगीत नाटक अकादमी से विधिवत रंगमंच प्रशिक्षण प्राप्त (प्रशिक्षक - बी.वी. कारन्त) |

संगीत का कोई भी व्यावहारिक प्रशिक्षण नहीं | सुन कर, पढ़ कर और किशोरावस्था में विख्यात संगीतविद ठाकुर जयदेव सिंह से सैद्धांतिक संगीत का कुछ ज्ञान मिला | १९७३ से प्रदर्शनकारी कला विषयक लेखन प्रारम्भ | १९८४ से १९९० तक लखनऊ के हिन्दी दैनिक 'अमृत प्रभात' में कला संवाददाता, १९९० से १९९६ तक "दैनिक जागरण' में कला संवाददाता, (यहीं संवाददाता से समीक्षक के रूप में पदोन्नत) तथा १९९६ से २००३ तक दैनिक 'हिंदुस्तान' में कला समीक्षक रहा | २००३ में एक बार फिर समीक्षक से संपादक पदोन्नत होकर राष्ट्रीय सांस्कृतिक संगठन 'संस्कार भारती' की मासिक पत्रिका 'कलाकुंज भारती' का संपादन | सम्प्रति एक समाचार एवं फीचर एजेंसी में संपादक |

मान-सम्मान - १९८६ में 'आकर्षण' संस्था का 'तूलिका सम्मान'

१९९७ में उत्तर प्रदेश कलाकार संघ का 'कला भारती' सम्मान

२००१ में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा 'अकादमी पुरस्कार' तथा अन्य कई सम्मान |

कुछ सम्मानजनक दायित्व - वर्ष १९९४ - १९९६ - उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी की कार्यकारिणी समिति का सदस्य |

वर्ष १९९६-९७ - उत्तर-मध्य सांस्कृतिक केंद्र (भारत सरकार) की परामर्शदात्री समिति के सदस्य |

वर्ष १९९७-९९ - राज्य ललित कला अकादमी में कार्यकारिणी समिति के सदस्य |

वर्ष २००४-२००६ - उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत कला अकादमी की कलाकार चयन समिति के सदस्य
आपका लिखा लेख 6 जुलाई 2011 को जनसत्ता, रायपुर संस्करण के नियमित स्तंभ ‘समांतर’ में प्रकाशित हुआ।


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